जो मरता हूं तो मुझे आज ही मर जाने दो
ये मुझे रोज रोज जिंदा कफन ना पहनाओ!!
मेरी आज़ादी को तमाशा तुम ना बनने दो
मुझको खोखले समाज की जंजीर न पहनाओ!!
मेरे पंखों की ताकत मुझको पता हो जाने दो
मेरी स्वछंद उड़ान पर प्रतिबंध ना लगवाओ !!
जो मुझको सताया है तो मुझको रो तो लेने दो
मेरे आंसुओं से कोई समझोता तो ना करवाओ !!
जो मरता हूं तो मुझे आज ही मर जाने दो
ये मुझे रोज रोज जिंदा कफन ना पहनाओ!!
शैलेंद्र शुक्ला ” हलदौना”